लेखनी कहानी -28-Feb-2022 वक्त की व्यथा
हां मैं वक्त हूँ, कुछ बताता हूंँ तुम्हें,
मेरी व्यथा आओ सुनाता हूंँ तुम्हें |
कहूँ कुछ भी, नहीं तुम मानोगे ,
जब सुनोगे तब मुझे तुम जानोगे |
अच्छा - बुरा, ऊंच-नीच सभी ,
देखने पर मजबूर हूंँ मैं भी |
पर क्या मुझे दुखी होते किसी ने देखा ,
शायद नहीं, पर मैं खुश नहीं हो सकता |
मैंने सतयुग देखा , द्वापर युग देखा ,
मैंने महाभारत और कलयुग को देखा |
देखी थी राम की सच्चाई यहांँ,
जिया हूँ मैं कान्हा के हर रूप में यहांँ |
आज भी सबको रहा हूंँ मैं देख ,
मेरी व्यथा पर नहीं देखता कोई ,
दर्द से आंखें मेरी भी तो रोई |
शहीद होते नौजवान मैंने देखे ,
छुरा घोंपते पीठ में गद्दार मैंने देखे |
चंद नोटों के लिए बिकते लोग देखें ,
पेट भरने के लिए देह के व्यापार होते देखे |
बच्चों से उनका छिनता हुआ बचपन देखा ,
रिश्तो को बाजारों में दागदार होते देखा |
नारियों को बोझ तले दबते देखा ,
पुरुषों को परिवारों के लिए मरते देखा |
नेताओं को वोट की भीख मांगते देखा ,
अधिकारियों को कालाबाजारी करते देखा ,
सैनिकों को सीमा पर लड़ते हुए देखा |
पहाड़ों को भी टूट कर बिखरते हुए देखा ,
पंछियों का एक तरफ कलरव देखा ,
मैंनें पिंजरे में कैद मैना को भी देखा |
पतझड़ मौसम , बसंत, बहार सब देखा ,
उजड़ते चमन को अपनी व्यथा पर रोते देखा |
क्या क्या नहीं देखा आखिर मैंने ,
किससे , क्या कहूंँ, नहीं जाना मैंने |
अपनी व्यथा को मैंने खुद को निगलते देखा ,
खुद के आंसुओं को खुद ही पीते देखा |
हांँ, मैं वक्त हूंँ , सब देखता हूंँ,
चुप रहता हूंँ, नियति पर सब छोड़ता हूंँ |
व्यथा मेरी हैं, सब सहना हैं मुझे ,
खुद से ही लड़कर खुद जीतना हैं मुझे |
पानी जैसा निर्मल बनकर बहना हैं मुझे ,
अपनी ही व्यथा पर और नहीं रोना है मुझे ||
शिखा अरोरा (दिल्ली)
Seema Priyadarshini sahay
01-Mar-2022 06:37 PM
बहुत खूबसूरत
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